Thursday, June 14, 2012

एक मौत है बाकी

मैं रात, अँधेरे में,
अकेले, दुख के घेरे में,
दो कदम चलकर ठहरता हूँ,
और दिन, सवेरे में,
इस दुनिया के व्यर्थ झमेले में,
दो पल खरीद के सोचता हूँ।

कि  इस एकाकी जीवन में,
वह दोस्त है या है कोई साकी.
और सिवाय दुख के इस जीवन में,
और कुछ क्या है बाकी।

पा कर खुद को अवाक्,
मेरा साधु  मन डोला,
और इस क्षण का लाभ उठाकर,
मेरा दीवाना दिल बोला।

कि उससे अनकही सी,
इक अधूरी बात है बाकी,
और बिन साथ उसके,
एक सुनसान रात है बाकी।

बिन उसके इस मेले में,
एक अटूट साथ है बाकी,
और स्नेह के साथ न थामा हुआ,
ऐसा एक हाथ है बाकी।

जिसे प्रकट न कर पाए,
वह एक एहसास है बाकी,
और साथ उसके जिस पर हँस न पाए,
ऐसी एक बकवास है बाकी।

उसे पा लेने का,
एक अमित अहंकार है बाकी,
और उसके साथ जीने के लिए,
एक अधूरा संसार है बाकी।

उसके साथ खाने के लिए,
एक आधी रोटी है बाकी,
और उसके साथ खेलने के लिए,
एक अनखोली खिलोने की पोटली है बाकी।

कुछ कम करने के लिए,
उसके  दर्द हैं बाकी,
और उसके जीवन में अलाव जलाने के लिए,
कुछ राते सर्द हैं बाकी।

उसके साथ रोने के लिए,
कुछ अनमोल आँसु हैं बाकी,
और साथ प्रशंसा करने के लिए,
कुछ प्रियांशु है बाकी।

उसको सजाने के लिए,
कुछ कुसुम हैं बाकी,
और उसके साथ बांटने के लिए,
कुछ तबस्सुम हैं बाकी।

उसके साथ उसका,
एक मीठा सा ख्वाब है बाकी,
मेरे प्रश्न का अभी तक,
उससे एक जवाब है बाकी।

पर उसको खो देने का,
एक कठिन पश्चाताप भी है बाकी,
और निर्जन जीवन जीने का,
एक निर्दयी श्राप भी है बाकी।

पर उसको पा लेने की,
एक अटूट चाह भी है बाकी,
और उस चाह को पाने की,
एक कठिन राह भी है बाकी।

और यह सब भी स्वीकार्य नहीं तो,
उसके साथ मरने के लिए,
एक पूरी मौत है बाकी।

~स्नेह, ज्ञान और सत्य;
हर्षद गुप्ता